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जानिए कैसे जौ भर भूमि कम पड़ने से काशी, कहलगांव या देवघर की बजाय बनारस चली गयी

डेस्क: हम सब यह तो जानते ही हैं कि हिंदू धर्म में काशी का कितना महत्व है. हिंदू धर्म के अनुसार काशी एकमात्र वो शहर है, जहां मृत्यु पाने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है. गंगा नदी के तट पर स्थित इस शहर को सबसे पवित्र शहरों का दर्जा दिया गया है. पर क्या आप यह जानते हैं कि अगर जौ भर भूमि कम न पड़ी होती, तो आज काशी उत्तर प्रदेश के वाराणसी की जगह बिहार के कहलगांव में बसी होती. आइए जानते हैं क्या है काशी का पूरा इतिहास.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब महादेव का विवाह माता पार्वती से हुआ, तब माता पार्वती को कैलाश में रहने में संकोच होता था. जब शिव जी को यह बात पता चली तो उन्होंने माता पार्वती की इच्छा पूरी करने के लिए देवर्षि नारद मुनि और भगवान विश्वकर्मा को कैलाश की भूमि के बराबर, जहां गंगा नदी उत्तरवाहिनी हो और त्रिखंड पर स्तिथ एक ऐसे स्थान का चयन करने को कहा जो ध्यान और तप आदि करने के योग्य हो.

भगवान शिव की आज्ञा के बाद नारद मुनि और विश्वकर्मा ने पहले बिहार के कहलगांव का चयन किया था. कहलगांव का चयन इसीलिए किया गया था क्योंकि यहां गंगा उत्तरवाहिनी थी और यह स्थल त्रिखंड पर स्थित पवित्र स्थल था जहां महर्षि वशिष्ठ जैसे ऋषियों ने तप किया था. 3 में से 2 शर्तो को पूरा करने के बाद जब कहलगांव की भूमि को नापा गया, तो यह भूमि कैलाश की भूमि से जौ भर कम निकली. इसके बाद नारद जी और भगवान विश्वकर्मा ने इस जगह को ख़ारिज कर दिया.

इसके बाद नारद मुनि और भगवान विश्वकर्मा ने झारखंड के देवघर को भी इसके लिए चुना था, पर ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ के एक साथ होने के कारण बाबानगरी देवघर को भी चुनाव नहीं किया जा सका. इसके बाद नारद मुनि और भगवान विश्वकर्मा ने उत्तरप्रदेश के वाराणसी को इन तीनों शर्तों पर खरा उतरने के कारण और अत्यंत पवित्र होने के कारण उसका चयन किया, और ऐसे ही काशी बिहार के कहलगांव या झारखंड के देवघर की जगह उत्तरप्रदेश के काशी में बस गयी. इसी कारण कहलगांव गुप्तकाशी के नाम से भी जाना जाता है, वही, बाबानगरी बैद्यनाथ धाम को देवों का शहर यानी देवघर कहा जाता है.

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