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समस्त पशु पक्षियों व जीवात्माओं के स्वामी हैं पशुपतिनाथ

सुभद्रा कुमारी’सुभ’

भगवान शिव देवों के देव हैं, आदि गुरु और सृष्टि के समस्त चर-अचर के स्वामी हैं. वे बुराइयों के संहारकर्ता हैं और अपने भक्तों के सदैव संरक्षक. ब्रह्मांड के चक्र को संतुलित बनाए रखने और बुराइयों से इसकी रक्षा के लिए शिव ने समय समय पर अनेक रूप धरे हैं. शिव पुराण एवं अन्य कई आदि ग्रंथों में भगवान शिव की लीलाओं और उनके अवतार का विशद् वर्णन किया गया है.

भगवान शिव के सहस्रों नामों में एक नाम पशुपतिनाथ है. आइए जानते हैं भगवान शिव के पशुपतिनाथ नाम के पीछे की कथा… पशुपतिनाथ वास्तव में भगवान शिव के ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया की पूर्णता का प्रतीक है. संदर्भ की दृष्टि से देखें तो सभी जानवरों की मिली-जुली अभिव्यक्ति पशुपत कहलाती है. विकासवाद के जिस नियम की हमें शिक्षा दी जाती है उसके अनुसार भी हर मनुष्य के भीतर अनेक पशुओं के गुण अथवा अवगुण जो भी कहें विद्यमान होते हैं.

एक जानवर में सिर्फ एक विशेष गुण विद्यमान होता है किन्तु एक मनुष्य के भीतर अनेक जानवरों के स्वभाव मिश्रित रूप से भरे हो सकते हैं. इसलिए ये कहा जाता है कि हर मनुष्य में पशुपत है. यदि कोई जागरूक हो और प्रयत्न करे तो वह पशुगत स्वभावों और बुराइयों से उपर उठ सकता है. उसे हर क्षण सचेतन रहना होगा, अपने मन और इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना होगा. यदि जीवन में कभी भी उसकी चेतना मंद पड़ी, अपने मन से उसका नियंत्रण हटा तो बुरे विचार फिर से उसकी ज्ञान पर हावी हो उठेंगे. आप पुनः पशुपत की अवस्था में चले जाएंगे.

एक समय था जब शिव वैरागी कहे जाते थे. संसार और सांसारिकता से कोसों दूर. किंतु अपने योग और साधना के बल पर उन्होंने अपने समस्त स्वभावों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया और वे देवों के देव बन गए, पशुपतिनाथ कहलाने लगे. उन्हें पशुपतिनाथ इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीवात्माओं के स्वामी हैं.

भगवान शिव का स्वभाव अत्यंत शांत और संयमित है. तभी उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है. हर्ष-विषाद, मानापमान के समस्त भावों से उपर हैं वो. हाथ में सदैव अमोघ त्रिशूल धारण किए हुए भी उन्होंने उसका उपयोग बहुत कम और संयत रूप से किया है. सबके लिए प्रेम, सभी जीवों के लिए करूणा यहीं शिव का स्वभाव है. भूत-प्रेत आदि गणों से लेकर सर्प बिच्छू, नंदी-भृंगी सभी उनके शरण में अभय रहते हैं. पशुगत स्वभावों से उपर उठकर भी समस्त पशुओं एवं जीवमात्र के लिए उनके वात्सल्य भरे स्वाभाव के कारण वे पशुपतिनाथ कहे जाते हैं.

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