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कलयुग में बस ये एक काम सहस्रों यज्ञ और जप का फल देने वाला है

सुभद्रा कुमारी’सुभ’

एक बार मुनियों की धर्म सभा में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि किस समय किया गया थोड़ा सा पुण्य भी अधिक फलदायक होता है और कौन उसका सबसे सुविधा पूर्ण अनुष्ठान कर सकता है. सभी ऋषि अपने अपने मत व्यक्त करते हुए उसे ही सही बता रहे थे. किंतु बहुत समय के वाद-विवाद के बाद भी वे किसी एक मत पर नहीं पहुंच सके. तब उन्होंने निर्णय लिया कि इस संबंध में महामुनि व्यासजी से पूछा जाय. शायद वे कोई सर्वमान्य तथ्य बता सकें. यह निश्चय कर वे व्यासजी के आश्रम पहुंचे.

संयोगवश उस समय व्यासजी गंगा स्नान कर रहे थे. प्रश्नकर्ता मुनिगण जैसे हीं वहां व्यासजी ने डूबकी लगाते हुए ज़ोर से कहा, कलयुग हीं श्रेष्ठ है. कुछ क्षण बाद जल के उपर आ उन्होंने फिर यह कहते हुए डूबकी लगाई कि शूद्र हीं धन्य है, शूद्र हीं धन्य है. तीसरी डूबकी उन्होंने यह कहते हुए लगाई कि स्त्रियां हीं साधु हैं, वे हीं सबसे धन्य हैं. स्नान के बाद जब वे ध्यानादि से निवृत्त हुए तो सभी मुनिगण उनके सामने उपस्थित हुए. व्यासजी ने उनका अभिवादन करते हुए आने का कारण पूछा.

ऋषियों ने उनसे कहा कि हमारे आने का कारण स्पष्ट करने से पूर्व आप स्नान के समय स्वयं द्वारा कही गई बातों का आशय हमें समझाएं. उसके बाद हम अपने आने का कारण भी बता देंगे. व्यासजी ने कहा कि हे मुनिगण, जो पुण्य सतयुग में दस वर्ष के तप और धर्म का आचरण करने से प्राप्त होता है, वहीं त्रेता में एक वर्ष, द्वापर में एक महीने और कलयुग के एक दिन में प्राप्त हो जाता है. अन्य युगों में की गई योग, यज्ञ और पूजा के बराबर पुण्य कलयुग में मात्र हरिनाम संकीर्तन से प्राप्त हो जाता है. इसलिए मैंने कलयुग को श्रेष्ठ कहा.

अन्य जातियों को उपनयन, वेदाध्ययन आदि से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है शूद्र को द्विज सेवा मात्र से उसकी सहज प्राप्ति हो जाती है. इसी प्रकार स्त्रियों को निश्चल भाव से अपने पति की मन, वचन और कर्म से सेवा के द्वारा हीं महान धर्म की सिद्धि और विशाल पुण्य राशि की प्राप्ति हो जाती है. हे मुनिगण यहीं कारण है कि मैंने गंगा स्नान करते समय कहा था कि स्त्रियां हीं श्रेष्ठ हैं और कलियुग हीं धन्य है. अब कृपया आप लोग अपने आने का कारण स्पष्ट करें.

ऋषिगण व्यासजी को नमस्कार कर बोले कि हे महामुनि हम लोग जिस हेतु से यहां आए थे वह अब पूर्ण हुआ. हम लोगों में इसी विषय पर विवाद उत्पन्न हो गया था कि किस प्रकार से और कौन अल्पकाल में अधिक पुण्य अर्जित कर सकता है. आपके दिए दृष्टांत से अब यह स्पष्ट हो गया और विवाद का समाधान भी.

तब व्यासजी ने फिर कहा कि हे मुनिगण, अपने योगबल से मैंने पहले ही आप लोगों के यहां आने का कारण जान लिया था. इसलिए वो सारी बातें कहीं. सत्य तो यहीं है कि जिसने अपने अवगुण रूपी दोषों को सद्गुण रूपी जल से धोकर निर्मल कर लिया है कलियुग में उसके थोड़े से प्रयास से ही धर्म की सिद्धि और पुण्य की प्राप्ति हो जाती है. व्यासजी के इतना कहते ही सभी मुनि गण साधु-साधु कर उठे. उन्होंने श्रद्धा से व्यासजी को नमस्कार किया और अपने अपने आश्रम को लौट चले.

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