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ऋषि पत्नी के सतीत्व के समक्ष मंद पड़ गया त्रिदेवों का तेज भी

सुभद्रा कुमारी’सुभ’

आज धर्म कथा के अपने अंक में हम आपको बताते हैं एक ऐसी स्त्री की कहानी जिसके सतीत्व के तेज के समक्ष त्रिदेवों का तेज भी मंद पड़ गया. वो स्त्री थीं प्रजापति कर्दम और देवहूति की पुत्री तथा सप्तर्षियों में एक अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनुसूया. देवी अनुसूया के पातिव्रत धर्म और सतीत्व के तेज के समक्ष ब्रह्मांड की हर ज्योति फीकी थी. एक ऋषि पत्नी होने के बाद भी उनके तेज के आगे देवलोक के देवगण तक शीश झुकाते थे.

भगवान राम वनवास के समय देवी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ अत्रि ऋषि के आश्रम के अतिथि बने थे. वहां देवी अनुसूया ने तीनों का सत्कार किया था. वहां उन्होंने सीता को कभी धूमिल न होने वाले दिव्य वस्त्र और आभूषण भेंट में दिया था. एक बार की बात है नारद मुनि तीनों लोकों में घुमते-घुमते वहां पहुंचे जहां देवी लक्ष्मी, सरस्वती और देवी पार्वती एकत्र होकर किसी बात पर विचार कर रहे थे. नारद मुनि ने तीनों देवियों को नमस्कार कर बातों ही बातों में देवी अनुसूया का जिक्र कर दिया.

उन्होंने कहा कि इस पूरे ब्रह्मांड में देवी अनुसूया जैसी सती स्त्री और कोई नहीं. यह सुनकर तीनों देवियों के मन में एक कौतूहल सा उत्पन्न हुआ कि एक मानव स्त्री ब्रह्मांड में सबसे अधिक सतीत्व वाली कैसे हो सकती है. उन्होंने देवी अनुसूया की परीक्षा लेने का निश्चय किया. इसके बाद वे त्रिदेवों ब्रह्मदेव, नारायण और महादेव के पास पहुंची और उनसे सती अनुसूया की परीक्षा लेने में सहायता करने की प्रार्थना की. त्रिदेव ब्राह्मण का वेश धारण कर देवी अनुसूया के आश्रम पहुंचे और भोजन की याचना की.

सती अनुसूया ने ब्राह्मण अतिथियों का यथोचित सत्कार कर और उनके लिए भोजन प्रस्तुत किया. अत्रि ऋषि उस समय आश्रम से दूर गए थे. भोजन के बाद ब्राह्मण रुप धारण किए त्रिदेवों ने माता अनुसूया से आश्रम में हीं रात्रि विश्राम की अनुमति मांगी. अनुसूया दुविधा में पड़ गईं. एक ओर तो अतिथि सत्कार की मर्यादा थी और दूसरी ओर यह विचार भी कि पति की अनुपस्थिति में आश्रम में परपुरुषों को रूकने की अनुमति कैसे दें. कुछ क्षण उन्होंने विचार किया और फिर ईश्वर का स्मरण करते हुए प्रार्थना की कि यदि मेरा पातिव्रत पवित्र है तो ये तीनों ब्राह्मण अवोध शिशु बन जाएं.

त्रिदेव उसी क्षण अबोध शिशु रूप हो गए. उन्हें किसी प्रकार का कोई ज्ञान न रहा. इधर त्रिदेवों के शिशु रूप होते हीं ब्राह्मण में हाहाकार मच गया. तब त्रिदेवियों को अपनी भूल का बोध हुआ और वे तत्क्षण अत्रि ऋषि के आश्रम में उपस्थित हुईं. उन्होंने देवी अनुसूया से अपने भूल की क्षमा मांगी और उनसे अपने पतियों को वापस लौटा देने की प्रार्थना की. देवी अनुसूया ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर त्रिदेवों को पुनः उनके वास्तविक रूप में लौटा दिया.

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